Saturday, January 26, 2013


वह बेहद बदसूरत है फिर भी जिन्‍दा है
कुछ न कुछ खूबसूरती उसमें जरूर होगी।
वह बेहद खूबसूरत है फिर भी जिन्‍दा है
कुछ न कुछ बदसूरती उसमें जरूर होगी।
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झूठ तो आँखें भी बोलती हैं
राज कुछ का कुछ खोलती हैं
दूर की दो लकीरों को एक दिखाती हैं
और अक्‍सर बड़ों-बड़ों को छोटा तोलती हैं।
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जीवन क्‍या है ? अनन्‍त होकर भी
सीमित महसूस करते हुए व्‍यवहार करना।
और अध्‍यात्‍म क्‍या है ? सीमित होकर भी
अनन्‍त महसूस करते हुए व्‍यवहार करना।
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विरोधाभासों का पुलिन्‍दा है आदमी
इसीलिए तो शायद ज़िन्‍दा है आदमी।
जिस बात से आज शर्मिन्‍दा है आदमी
उसी बात को कल कहे उम्‍दा है आदमी।
रमता जोगी बहता पानी है कभी
और कभी तो पूरा दरिन्‍दा है आदमी।
ग़रज़ औरों की तो मुनादियाँ भी बेअसर
ग़रज़ उसकी तो परिन्‍दा है आदमी।
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सावन में हर ओर का नज़ारा लगता है वन सा
देर तक निहारो तो हरियाली लगती है अपने तन सा।
केवल कामों पर ध्‍यान है, प्रचार-प्रसार में नहीं
बहुत बड़ा है फिर भी लगता है सामान्‍य जन सा।
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मन हल्‍का होकर फैल गया है गगन सा
तन सिहर-सिहर गया है शीतल मन्‍द पवन सा।
इतना प्‍यारा, खुबसूरत व खुशबुओं से भरा
वह लगता है एक ताजे़ खिले सुमन सा।
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उसी की बात गहराई से असर करती है
जो सदा एक रहता है कर्मणा, वाचा, मनसा।
जो पूरी कायनात से जुड़ाव महसूस करता है
वह धरती पर लोगों को लगता है एक किरन सा।

Saturday, January 5, 2013


म्‍यानों को तो तलवारें ही मिलेंगी
     तंग दिमागों को तो दीवारें ही मिलेंगी।            
     जब जंग, जेहाद के जमाने हों
     जिधर देखो क़तारें ही मिलेंगी।                  
     जब सब कुछ बिखर जाए रेज़ा-रेज़ा
     उसकी रग-रग में पुकारें ही मिलेंगी।         
     इतना बड़ा हो गया है आजकल
     उसके अग़ल-बग़ल में मीनारें ही मिलेंगी।     
     मेरे लिए हमेशा आंगन में खड़ी रही
     माँ तेरे आंचल में बहारें ही मिलेंगी।         
     लोगों के दुख-दर्द बांटने पर हमेशा
     दिलों में दुआओं की फुहारें ही मिलेंगी।       
     जब ऊंचे शायर लोगों के बीच नहीं जाएंगे
     मंचों से उलटी सीधी हुंकारें ही मिलेंगी।      
     खुद्दारी जिसे जाँ से भी प्‍यारी है
     कहाँ उसके आसपास दीनारें ही मिलेंगी ?    
     बिन िवचारे वोट देने व न देने वालों को
     हमेशा ऐसी वैसी सरकारें ही मिलेंगी।             

Friday, January 4, 2013


रोशनी की एक किताब लिखता हूँ
     अनुशासित इन्‍क़लाब लिखता हूँ।            1
     संवेदनायेंें ही हमें जि़न्‍दा रखती हैं
     संवेदनायेंं बेहिसाब लिखता हूँ।                  2
     देशकाल बदलता रहता है
     बदलावों का हिसाब लिखता हूँ।              3
     आँच आए जब स्‍वाभिमान पर
     रोशनाई नहीं, तेज़ाब लिखता हूँ।             4
     वैसे हूँ फ़कीर, अमीरों के सामने
     अपने को भी नवाब लिखता हूँ।             5
     जुगनुओं को ढूँढ़-जोड़ कर
     अंधेरों में आफ़ताब1 लिखता हूँ।                  6
     पर्यावरण संतुलन ही कल का धर्म
     बार-बार यही जनाब लिखता हूँ।             7
     चांदनी रात में चमकती लहरें
     समुंदर पर महताब लिखता हूँ।                   8
     तूफ़ानों के बीच बनानी हैं राहें
     हौसलोंं की नाव औ आब लिखता हूँ।             9
     सारी कायनात एक परिवार है
     सोते-जागते यही ख्‍़वाब लिखता हूँ।           10
 


     साँसों में, नशा हो जिन्‍दगी का
     साँसों की ही शराब लिखता हूँ।              11
     तू है हर जगह पर दिखता नहीं
     इसी ख्‍़ाूबी को तेरे नक़ाब लिखता हूँ।           12
     जब तू जोड़ने वाली बातें बोले
     तेरी ज़ुबां को गुलाब लिखता हूँ।             13
     धरती पे गंगा है, आकाश में भी
     पूरी कायनात को दोआब1 लिखता हूँ।              14
     जब तू कहता है ज़माना खराब है
     मैं तेरी सोेहबत को ख्‍़ाराब लिखता हूँ।           15
     सीखता हूँ नन्‍हें बच्‍चों से भी
     नवजात बच्‍चों को आदाब लिखता हूँ।             16
     सारे जीवों के साथ मिल-जुलकर
     आज के सवालों का जवाब लिखता हूँ।        17
     न हों किसान तो भूखे मर जाएं
     उसी के नाम सारे िख्‍़ाताब2 लिखता हूँ।     18
     क्रिसमस के तोहफे सबको मिल पाएं
     मुफ़लिसों के नाम जुराब3 लिखता हूँ।              19
     अंतस की क्षमताएं पूरी खिल जाएं
     सबके आनंद का शबाब4 लिखता हूँ।          20

     न हो दुख किसी को, न बंद हों रास्‍ते
     खोजकर ऐसा आबो-ताब1 लिखता हूँ।              21
     एहसासों को कूटता, पीसता, पकाता हूँ
     तब कहीं शायरी का कबाब लिखता हूँ।        22
     सबके दिलो जान को आ जाए सुकून
     ऐसा मंत्र, न कि अजाब2 लिखता हूँ।              23
     पारदर्शी है जिंदगी और शायरी
     मैं दोनों को ही बेहिजाब3 लिखता हूँ।              24
     सफ़र में बोझ कम हो जानते हुए भी
     ग़ज़ल में कितना माल-असबाब4 लिखता हूँ।         25
     दुनिया की सारी नदियां माँ सी प्‍यारी हैं
     तुम कावेरी, मैं चेनाब लिखता हूँ।            26
     उड़ो और बुलंदियों पर पहुँचो
     तुम्‍हारे लिए ही परे सुख्‍़ाार्ब5 लिखता हूँ।         27
     धरती में उगती, आसमा से बरसती
     मैं भी उन्‍हीं नेमतों का सैलाब6 लिखता हूँ।         28
     सारा मीठा पानी बह न जाए समुंदर में
     इसीलिए तो हर कहीं तालाब लिखता हूँ।       29
     पूरी सच्‍चाई देख ही नहीं पाते हम
     और कहते हैं उसे बेनक़ाब7 लिखता हूँ।        30

     शायरी संवारती है शायर को भी मंंत्र सी
     इसलिए मैं शायरी नायाब लिखता हूँ।              31
     आया धरा पर अनूठे गुण धर्म लेकर
     तभी हर बंदे को लाजवाब लिखता हूँ।              32
     हम अनंत, कायनात हमारा विस्‍तृत शरीर
     जुड़ाव और देखभाल में बेताब लिखता हूँ।      33
     सवाल उठाना भी हिमाक़त माना जाता
     सही सवाल उठाने की ताब1 लिखता हूँ।       34
     जो बेसहारों को ढूँढे़ और मदद करे
     उन्‍हीं के नाम सारे सवाब2 लिखता हूँ।             35
     ईश्‍वर में क़ुदरत या कुदरत में ईश्‍वर
     इसी भरम को तो मैं सराब3 लिखता हूँ।       36
     जो दुनिया से ले कम और दे ज्‍़यादा
     उसी बंदे को कामयाब लिखता हूँ।            37
     ‘जीत-जीत-जीत‘ के नियम से जी कर देखो
     जिन्‍दगी का फ़लसफ़ा नायाब लिखता हूँ।      38
     पूजना है तो धरती माँ को सब पूजें
     दिलो जां से पूजा ऐसी शादाब4 लिखता हूँ।         39
     नफ़रत है बुराई से, बुरे से नहीं
     मैं तो दुश्‍मनों को भी अहबाब5 लिखता हूँ।         40

     संवेदनाएं ही जोड़ती हैं हम सबको
     संवेदनहीनता को गिरदाब1 लिखता हूँ।              41
     बिखरा तो हुईं, तमाम मुकम्‍मल बूँदें
     कभी-कभी ख्‍़ाुदा को सीमाब2 लिखता हूँ।         42
     पूरी धरती प्‍यारी है, पवित्र है
     पूरी धरती की माटी को तुराब3 लिखता हूँ।          43
     सलीक़ा चाहिए माहौल से रस लेने का
     तितलियों, भौंरों के नाम उन्‍नाब4 लिखता हूँ।       44
     झूठ व फ़रेब की कमाई पचती नहीं है
     तभी तो इन्‍हें क़़ुदरती जुलाब लिखता हूँ।      45
     गुनाहों को छुपाता है कोई बालों के रंग
     मैं न ही परदा न ख़िज़ाब लिखता हूँ ।                   46
            जब ख्‍़ाुद में डूब, ख्‍़ाुद से बात करता हूँ
     कभी ख्‍़ाुदा कभी वह्‌हाब़5 लिखता हूँ।            47
     इन्‍द्रधनुष को लोग क्‍या-क्‍या कहते हैं
     मैं तो इसे आसमानी मेहराब6 लिखता हूँ।      48
     वह ईमानदार है गुस्‍से में भी, प्‍यार में भी
     इसीलिए उसी भोलेराम का रुआब  लिखता हूँ।    49
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